સ્વ. ભાનુમતી જોશી

મારી ધર્મપત્નીને આ બ્લોગ સમર્પિત છે.
આતામંત્ર
सच्चा है दोस्त, हरगिज़ जूठा हो नहीं सकता।
जल जायगा सोना फिर भी काला हो नहीं सकता।
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सिर्फ अपनहि ख्याल करके जिए तो हम क्या जिए भाई ,ज़िंदादिली का तकाज़ा एहै ोरोके लिए जीते जाई |
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सच्ची बात कही ।
जब मेरे सुरेश भाई मुझे बिन याचना किए हुवे कॉमेंट देता है तब मुझे बहुत ख़ुशी होती है . परमेश्वर उसको हर प्रवृतिमे कामयाबी दे ,
انتہائی کا بھلا نہ بولنا، انتہائی کی بھلی نہ چوپ،
انتہائی کا بھلا نہ شاور، انتہائی کی بھلی نہ دھوپ. …
अति सर्वत्र वर्जियत
अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेण रावणः ।
अतिदानात् बलिर्बद्धो अति सर्वत्र विर्जयेत् ।।
अत्यधिक रूपवती होने के कारण सीता का अपहरण हुआ । रावण को अपने अत्यधिक बलवान् होने का अभिमान ही सर्वनाश करा दिया और राजा बलि का बड़ा दानी समझने का अहंकार ही अपनी शरीर को विष्णु-पग नपवाना और बंधना पड़ा । अतः अतिचार को निषिद्ध किया गया है ।
कहते हैं अति सर्वत्र वर्जते यानी किसी भी चीज की अति दुखदायी होती है। चाहे वह अति खाने-पीने को लेकर हो, प्रेम या नफरत की हो, या अन्य किसी तरह की अति हमेशा दुख ही देती है।
एक बार की बात है पृथ्वीपति भरत जिनके नाम पर भारत का नाम रखा गया। एक दिन वे नदी पर नहाने के लिए गए। वहां उस समय एक हिरनी पानी पीने आई। उस समय जब वह पानी पी चुकी थी। वहां अचानक शेर की आवाज सुनकर वह उछलकर नदी के तट पर चढ़ गई। बहुत ऊंचे स्थान पर चढऩे के कारण उसका गर्भपात हो गया। नदी लहरो के साथ उसके गर्भ से निकला बच्चा राजा भरत के पास पहुंचा। राजा भरत उसे अपने साथ आश्रम ले आए। वे उसका अपने बच्चों की तरह पालन-पोषण करने लगे।
उसी के कारण उनका पूजा-पाठ आदि सब छुट गए। वे दिन रात बस उसी के चिंतन में लगे रहते। एक दिन आश्रम के पास एक हिरणों का झुंड आया। वह हिरण उन्हीं के साथ चला गया। जब वह बच्चा वापस नहीं लौटा तो राजा भरत सोचने लगे कि कहीं उसे किसी भेडि़ए ने तो नहीं खा लिया। क्या वह आज जंगल से लौटेगा या नहीं वे दिन रात बस उसी हिरण के बच्चे की चिंता करते रहते। जब उनकी मृत्यु का समय आया तब भी वे उसी हिरण के बारे में सोचते रहते थे। इसी तरह हिरण के वियोग में राजा भरत ने अपने प्राण त्याग दिए। यही कारण था कि उन्हें अगला जन्म हिरण के रूप में लेना पड़ा।
इतने महान राजा को भी हिरण से प्रेम आसक्ति हो जाने के कारण अगला जन्म हिरण के रूप में लेना पड़ा।
मुझे अति प्यारी लगती और मेरा लिखनेका होसला बढ़ाने वाली मेरी छोटी बहन प्रज्ञा
तूने मेरा आधा वाक्य”अति सर्वत्र वर्जियत ” पूर्ण किया और उसके बारेमे पूरी कथा भी लिखी मुझे बहुत ख़ुशी हुई में धन्यवाद देता हुँ .