Daily Archives: જુલાઇ 14, 2016

आताश्रीकि हरजाई शतक कविता भाग #6

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Written by Himatlal Joshi

लुत्फ़ और मसर्रत ढूंढनेके लिए मत घर घर भटकाई 
इस दुनियामें  कोई नहीं ऐसा ग़म  तेरा  ले जाई  …संतो भाई  ..८१
फूलों को  खबर है  मरनेकी  फिरभी हस्ते जाई
मर्दुमको  मालुम है मरना रोकर  जीवन बिताई। .संतो भाई .८२
परनरिसे प्रीत  न करना  न करना  भलमन साईं  ….(अहमदबादमे मेरा ४० की उमरका मेरा दोस्त था  इसकी औरत तक़रीबन  २२ सालकी उमरकि  होगी   औरत क़ा  बाप  और मेरा बाप दोस्त थे  में उसके घर  रहता था  मुझे वो औरत अच्छी  हिफाज़त करती थी बिलकुल निर्दोष भाव था  एक दफा  औरत ने  मेरी पास चूड़िया मंगाई  मैंने उसको   चूड़ियां  ला के दी  उसने मुझे  पूछा  कितने पैसे लगे ? मैंने कहा  क्यों कीमत  की पूछती   हो  ये चूड़िया  मेरी ओरसे तोहफा  है   . क्योंकि  तू मेरी  बहन भी तो हो ? फिरभी उसने मुझे जबरन  पैसे दिए     . और उसने अपने पतिसे कहा   कितनी अच्छी  चूड़ियां है  ? हिम्मत भाई पास मैंने  मंगवाई थी  वो पैसा नहीं लेताथा  लेकिन मैंने उसको ज़बर  दस्ती दिया  पति मुझ पर     बहुत गुस्से हुवा  और मुझको घरसे निकाल दिया   इसी लिए   मैंने लिखा हैकि    दुसरेकी स्त्रीको  भलमन साईं  भी  नहीं करना चाहिए  वहमकि  कोई दवा नहीं है  )
दूरसे उसको राम राम  कहना  उसमे तेरी भलाई   …संतो भाई  .. ८३
तुम्बेका जो पानी पीए और  लोढ़ी ढेबर  खाई
ज़मीन के ऊपर सोनेका हो उसके घर कभी बैद न जाई  …संतो भाई। .८४
जीनकारी  चोरी मार फाड़  ऐसी छोडो बुराई
ऐसे दुष्टका संग न करने में है तेरी भलाई   …संतो भाई  ..८५
सियाह बख्तिमे  दुनियामे  कोई न करेगा  सहाई
तारीकी  जब आ पड़ती है  साया छोड़के जाई  संतो भाई  ..८६
क्यारी बनाके केसरकी उसमे पिस्ता  डाला जाई
अंगूर रसका  पानी पिलाओ  प्याजकि गंध न जाई  …८७
आज कलके युवक   क्या करते है  ज़िंदगी भरमे कमाई
डिग्री लेते  नौकरी  करते  पेंशन  खाके  मर जाई  …संतो भाई  ..८८
ज़िन्दगीमें  कोई ग़म न होतो  जिन्दगीको मज़ा नाई
राह आसानी वाला होतो  गुमराहकि मज़ा नाई  …संतो भाई  ..८९
हड्डी मेरी टूट जानेके बाद  अशक्ति आई
हौसला  तो  है  दिलमे यारो शरीरमे शक्ति नाई  …संतो भाई  ९०
हमसाया  तक  जाने नहीं तो  जगमे कैसी बढ़ाई
साहसका कोई काम न किया हो  फोगट ज़िंदगी गंवाई  …संतो भाई   ..९१  
उनके जैसा नेक अरु  उनके जैसा बद नाई
उनकी नफरत और मुहब्बत  दोनोकी हद नाई  …संतो भाई  ..९२
अग्नि रूठे  जलको जलादे  जल रूठे पथराई
नारी  रूठी (स्त्रीको रूठने मत दो उसका सनमान  करो  ) वो कर  बैठे   नकरे दुर्गा माई   …संतो भाई  ..९३
माली बनके फल फूल बोना पानी देना पिलाई
मालिक बनके  ंखुदको  खाना सबको देना खिलाई   …संतो भाई  ..९४
मानव जातने प्रगति किया आसमानमें ऊँचे जाई
इतना ऊँचे  पहुंच  जानेका  देवका मकडर नाई  ..संतो भाई   ..९५
पति मर्जनके बादमे  विधवा होती है दू :ख  दाई
कानजी  बापा के  मरनेसे  दू :खी हो गई  सुन्दर आई  ….  ९६
शत्रुको मार डालनेके  लिए भीष्मने राह दिखाई
जब तक ख़त्म न करसको तुम  मत देना धमकाई   ..संतो भाई   ९७
बगैर  लोनकी   भाजी मिली  वो बड़े  शौकसे   खाई
प्रेमसे कॄष्णको  दलिया  खिलाई  खीर समझ के  खाई  ..संतो भाई  ..९८
वाल्मीकि  रहज़न ने  अपने हिंसाको  अपनाई
नारद ऋषिने उस पापीको अच्छी राह दिखाई   ..संतो भाई  ..९९
बहुत ढूंढा  खुदाको  हमने मंदर मस्जिद माई
गौर जहनसे  सोचा हमने  मिला मन मंदर माई   संतो भाई  ..१००
मैं  बगीचेमें  फिरताथा तब सुन्दर युवती आई
मेरी उमरका ख्याल न किया और  चुंबन  कर चली जाई  संतो भाई  ..१०१
लाप्स्टर कहे  हम खेलतेथे  बङे गहरे  समंदर माई  
अगले जन्मके  दुश्मनने हमे  लोगोको दिया खिलाई   ..संतो भाई  ..१०२
बेर बबूलकी  झाड़ी के बिच  भटकने  वाला “आत्ताई “
समयने उसको अमेरिका भेजा  देखो कैसी जमाई   .. संतो भाई  ..१०३



क़  से खाई