आताश्रीकी हरजाई शतक कविताका भाग #५

खार चुभनेसे सारी जमिनको चमड़ा कैसे  मढ़ाई
चंदेकि जूती पहननेसे  खारसे देती बचाई   ..संतो भाई   …६३
जुबांको  न ईजने गोयाई न दिलको पज़ीराई
ऐसे निज़ामे महफ़िल होतो  महफिल्को बाई बाई   ..संतो भाई। .६४
दस आदमीके कहने परभी  दाढ़ी  ना कटवाई
माशुकका  मन कहना और  दाढ़ी दी कटवाई   ..संतो भाई  ६५
सुन्नी सद्दाम हुसैनको  इक दिन समयने गद्दी दिलाई
कुर्द शियाको  मार दिए जब  समयने  फांसी दिलाई   ..संतो भाई   ..६६
दिल्ली जिसका जन्म हवा वो  मुशर्रफ  पाकिस्तान जाई
पाकिस्तानका  हाकम बन बैठा अब घर कैदमें जाई   ..संतो भाई  ..६७
लीबिया देशका  मालिक गद्दाफिने मगरूरी सरपे चढ़ाई
अमरीका देशसे  दुश्मनी  करके खुदकी कबर खुद वाई   संतो भाई   ..६८
धीरजके धरनेसे हाथी मन भर चारा खाई
कुत्ता रोटिके टुकड़े के कारण घर घर जाई  संतो भाई  ..६९
संतोंने विषयाको छोड़ी मूढ़ तामे लिपटाई
ज्यों  नर डारत  वमन वमन कर कुत्ता स्वाद सों खाई   ..संतो भाई   ७०  
भूख गई  और  लड्डू मिले और ठण्ड गई  मिले कंथाई
जवानी गई नाज़नीन  मिले  तो तासो दिल बहलाई   …संतोभाई    ७१  
सिर्फ अपना ख्याल करके  जिए तो हम क्या जिए भाई
जिंदादिलिका   तक़ाज़ा ये  है  औरोंके  लिए जीते जाई .. संतो भाई  ..७२  
वामन बनके  बलिराजासे  प्रभुने  किनी गड़ाई
कायनात  लीनी तिन कदमोमे  नाम वामन रह जाई   संतो भाई   ७३
सबक  तुझे  देती है  तेरे बालों की  सफेदाई
बुरे कामका ख्यालोको तुम  छोड़ दे मेरे भाई   ..संतो भाई   ..७४
देवताओंने  दिया हवा विष शंकर प्रेमसे खाई
चोरी छुपिसे अमृत खाया  रहने शीश कटाई    संतो भाई    ७५  
  शास्त्र  कारोको  चन्द्र के ऊपर अमृत  दिया दिखाई  
बुध्धि शक्तीने  साबित किया की चन्द्र पे हवा तक नाइ  …संतो भाई  ७६
मासरका कभी गर्व  न करना  न करना अदेखाई
ये है तेरे जानी  दुश्मन  धीरेसे  खा जाई    …संतो भाई    ७७
खबर नहीं  तुझे है  दुनियामे पलकी मेरे भाई
फिरतू क्यों  करता रहता है कल परसों की बड़ाई    …संतो भाई  ..७८
हाशुक तू जब  बात करती हो लब तेरे मुस्कुराई
जब तू आहिस्ता चलती हो  कमर तेरी लचकाई  ..संतो भाई   ७९
अति बरसातका   न बरसना  अच्छा अति धुप अच्छा न भाई
अति बशरका  न बोलना अच्छा अति अच्छी  न  चुपकाई    .संतो भाई   ..८०

2 responses to “आताश्रीकी हरजाई शतक कविताका भाग #५

  1. pragnaju જુલાઇ 14, 2016 પર 4:26 એ એમ (am)

    દાદાજી ગાતા
    हर दम सन्मुख में छवि छावैं शोभा बरनि न जाई।
    अचल अखंड औ सहज समाधी यही कहावै भाई।
    नाम की धुनि हर शै से होती सब में रूप देखाई।
    राज योग या को सब कहते सूरति शब्द में लाई।
    अंत छोड़ि तन राम धाम चलि बैठ जाव चुपकाई

    • aataawaani જુલાઇ 14, 2016 પર 10:02 એ એમ (am)

      પ્રિય પ્રજ્ઞા બેન
      सच है नामकी धुनि हर शै से होती એક કંઠમાં માળા હાથમાં માળા રાખેલા માણસને મારી કળા બતાવવા ઠળીયાની મેં બનાવેલી માળા બતાવી એ ભક્ત જેવા દેખાતા ભાઈ બોલ્યા આવી માળા ફેરવવાથી ભગવાન રાજી ન થાય મેં કીધું તમે તુલસીની માળા ફેરવો છો પહેરો છો તમને કેટલીક વખત ભગવાન પ્રસન્ન થયા . મેં એને મારું ઉખાણું કીધું .
      હાથમાં માળા ડોકમાં માળા કોણીએ બાંધી માળા
      એમ કરતા જો રામ રીઝે તો હું ગોઠણે બઘું માળા
      એ ભાઈ મારું ઉખાણું સાંભળી ઉદાસ ચહેરે આઘા ખાંસી ગયા .

आपके जैसे दोस्तों मेरा होसला बढ़ाते हो .मै जो कुछ हु, ये आपके जैसे दोस्तोकी बदोलत हु, .......आता अताई

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