મારા રચેલા ભજનની કેટલીક કડિયો વિગત સાથે

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મારાથી એક કવિતા  બહુ લાંબી લખાઈ ગઈ છે  , મને બરાબર ખબર છે કે આ વિજ્ઞાન યુગમાં   કોઈને વાંચવાનો સમય નથી  . એટલું સારું છે કે  લોકો પોતાનું લાંબુ લખાણ  વાંચવા આપે છે  . કે જેથી કરીને  મારા જેવાના જ્ઞાનમાં  વધારો કરે છે  .  આ જે મારી લાંબી કવિતા બનાવી છે એ કેવળ મારા માટે મારા આત્માનંદ માટે છે  ,મારા મગજની કસરત માટે  છે  . સ્વ  , ઝવેરચંદ  મેઘાણી  કહી ગયા છે કે” તારી સુખની છાયાલડીમાં સૌ ને  નોતરજે  દુ :ખ સહી લેજે  ખૂણે બેસી એકલો “પણ  મારા જાત અનુભવે એવું લાગ્યું છે કે  સુખની વાત પણ કોઈને ન કહેવી જોઈએ  મેં મારા આનંદની  વાતો કરીને  ઈર્ષાળુ ઉભા કર્યા છે   . સલાહ આપનારા ઘણા  ફૂટી નીકળ્યા છે  . એટલે
निहाँ रख अपने  लुत्फ्को बाबा  किसे न कहो  हरषाई
हासीदतो जल जाएंगे  लेकिन  तुझको  देंगे जलाई  ….संतो भाई  ४०        निहाँ =गुप्त   लुत्फ़ = आनंद
हरषाई =हरखाई   ,  पोरसाई   हासिद  = ईर्षालु
काले करम तूने बहोत  किए थे जब थे बाल काषाई
अब तुझे सुधर जाना होगा  बालोने  सफेदी दिखाई  ….संतोभाई ४९    काषाई = काले  , श्याम
नंगा भूका सो रहताथा  जबकि थी ग़रीबाई
अब वो दिन तेरे पलट गए है  मत करना कँजूसाई   …संतोभाई   ५०
जब मुझे मजबूरन रोजाना कमसे कम  बीस माइल  चलना पड़ता  था   गर्मीके दिनोमे मादरजाद नंगा  रोड से  थोड़े दूर  भूका प्यासा पड़ा रहता था  क्योंकि  कभी कभी  खानेका भी  कुछ इंतज़ाम  न ही होता था “कभी घी घणा कभी मुठी  चना  कभी वो भी मना ” ऐसी मेरी  दशा थी  . और अब  हालतें सर गुजस्त   है  अब भी में
गर कंजूसी से रहू तो शुभ दिनको ठोकर  मारनेकी बात है
सब जन करत  सहाय  सबलको  निर्बलके न सहाई
पवन झगावत  अगन ज्वाला  दीपक देत बुझाई। …संतोभाई  …५१
पराधीनको  सुख नही   मिलता  याद रख्खो  मेरे भाई
चन्द्र  शंकरके  सर पर रहता  पतला होता जाइ  …संतो भाई ५५
चित्ता  मुर्दा  मनुष्य देहको  आगमे देती जलाई
चिंता ज़िंदा जिस्म बशरको धीरेसे   देती  जलाई   …. संतो  भाई   ..५६    बशर = मनुष्य   जिस्म  =
शरीर
बग़ैर  मेरी मर्जीके  यहाँ  हैयात  मुझे ले आई
न होगी मेरी इच्छा  फिरभी इक दिन क़ज़ा ले जाइ  …संतोभाई  ..५४
दरख़तके रंग  बदल जाते  है जबकि पतझड  आई
समय आनेपर  इंसानोके ख्याल बदलते जाइ  …संतोभाई। .. दरख्त   = झाड़
ग़रज़के  दोस्तों होजाते है  ग़रज़ मिटे चले जाइ
सच्चा  दोस्त जो होगा अपना   साथ रहेगा सदाई। …संतोभाई
अच्छे काम करो दुनियामे  इच्छो सबकी भलाई
हो सके उतनी मदद करो तुम  छोडो  दिलकी बुराई। …संतोभाई  ३९

4 responses to “મારા રચેલા ભજનની કેટલીક કડિયો વિગત સાથે

  1. pragnaju માર્ચ 4, 2016 પર 8:22 પી એમ(pm)

    अब चने जैसा है : यह दिल यया है रे किस दिल की बरत का रहे हो रे कहीं यह अहंकार को धड़कन तो ही तो तुम दिल नहीं कह रहे हो रे अगर अहंकार की धड़कन को दिल कह रहे … मेरे देखे, अगर पर्व अहंकार में रम अभी बावले हो तो छोडो … नास्तिक हो जाने में बुराई नहीं है ।
    जिंदगी हमेशा एक नया मौका देती है…
    सरल शब्दों में उसे ‘कल’ कहते हैं !!
    ये जो मेरे हालात हैं एक दिन सुधर जायेंगे
    मगर तब तक कई लोग मेरे दिल से उतर जायेंगे

  2. NAREN માર્ચ 4, 2016 પર 9:53 પી એમ(pm)

    साहेब , खूब सुन्दर रचना

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