Daily Archives: ડિસેમ્બર 11, 2015

,अशआर اشعار ” કવિતા

हज़ारो ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत  निकले  मेरे अरमान  लेकिन फिरभी कम निकले    १
निकलना खुल्दसे आदमका  सुनते  आये है लेकिन
बहुत बे आबरू होकर  तेरे कुचेसे हम निकले    २
मुहब्बतमे  नही है फर्क  जीने और मरनेका
उसीको देख कर जीते है जिस क़ाफ़िरपे  दम निकले। ..३
खुदाके वास्ते पर्दा  न कबसे उठा वाइज़
कहीं ऐडा न हो  वहांभी  वही क़ाफ़िर  सनम निकले  …४
कहाँ मयखानेका दरवाज़ा “ग़ालिब ” और कहीं  वाइज़
पर इयंा जानते है कल  वो आताथा के हम निकले  ….५
पिंनसपे  निकलते है  कुचेसे मेरे घर के
कंधो भी कहारोको  बदलने नही देते
//////////////////////////////////////////////
बोसा न दीजे न दीजिए  दूषणाम् ही सही
आखर जुबाँ तो रखतेहो  गर दहां  नहीं  १
आज इतनी भी  मयस्सर  नहीं  मयखाने में
जितनी हम छोड़  दिया करते थे  पयमानेमे    २
ग़ालिब  बुरा न मान गर वाइज  बुरा  कहे
ऐसा  भी है कोई जिसे सब अच्छा  कहे ?
मरना भला है  उसका जो अपने लिए जिए
ज़िंदा रहा जो मर चूका  स्वदेशके लिए
जहाँ तक हो “आताई” दिलमे रख आला खयालोको
हसद मगरूरी दिलमेंसे  निकल देने के काबिल है
“आता ” मायूस होक इक दिन बैठा था ज़ेरे शज़र
चलबसि मायूसी उनकी  माहरु मिलजानेके बाद
“आता”  तू  कामिल बनेगा आला ख्याल रखनेके बाद
लोग आदर फिर करेंगे  कामिल हो जानेके बाद
रंग लाती है हिना पत्थर पे पीस जाने के बाद
सुर्ख रूह होता है  इंसां ठोकरे खानेदके बाद
राहमे बैठाहु में  कोई राहेसँग  समझे  मुझे
आदमी बन जाऊँगा  कुछ ठोकरे खानेके बाद
ला पिलादे साकिया  पैमाना  पयमानेके बाद
होशकी बाते करूँगा  होशमे आजाने के  बाद
खर्च किया वो धन था तेरा  धन कमलनेके बाद
बाकी धन खर्चेगा कोई  तेरे मरजानेके बाद
जब तुम आये जगतमे  लोक हँसे तुम रॉय
ऐसी करनी कर चलो  तुम पीछे  सब रॉय
मोतने ज़मानेको  ये समा दिखा डाला
कैसे कैसे  रुस्तमको ख़ाक़मे मिला डाला
तू यहाँ मुसाफिर है  ये सरए फानी है
चार रोज़की मेहमाँ  तेरी ज़िंदगानी है
मरनेके बाद तुझको  चित्तापे सुलायेंगे
तेरे चाहने वाले  तुझको आग लगाएंगे
कल जो  तनके  चलतेथे  अपनी शान शौकत  पर
शम्मा तक नही  जलती आई उसकी तुर्बत  पर
देख वो सिकन्दरके  हौसले तो आली थे
जब गयाथा दुनियामे दोनों हाथ खाली थे