मंदर मस्जिद इमामखाना चर्च गुरु द्वारा जाता हुँ ,

એક દિવસ મારે ઘરે બે મહિલાઓ આવી   ,બારણે ટકોરા માર્યા મેં બારણું ખોલ્યું  .અને એને મારે ઘરે આવવાનું કારણ પૂછ્યું  . બંને મહિલાઓ  સ્પેનીશભાષિ હતી   .
મારા વિષે એણે માહિતી મેળવી હશે  , કે હું ભારતનો છું  . એટલે તેઓએ  મને નમસ્તે કર્યા  .  અને એક હિન્દી માં લખાએલી પત્રિકા આપી   .અને મને કીધું કે અમારા ચર્ચમાં  એક ધાર્મિક ઉત્સવ છે  એમાં તમે આવશો  .? મેં આવવા માટે ખુશી બતાવી   , મેં મારા મનમાં કીધુંકે   मंदर मस्जिद  इमामखाना चर्च गुरु द्वारा जाता हुँ  ,मिलता हुँ जब में मर्दुमको  तब मसरूर  हो जाताहुँ  . મેં તેઓને કીધું  મને ચર્ચમાં     આવવામાં વાંધો  નથી પણ હું  કાર ચલાવતો નથી   ,એટલે મને કોઈ લઇ જાય તો હું  આવી શકું   . એક સ્ત્રી  કે જેનું નામ શીરી હતું  તે બોલી કે મારો પતિ પાવેરો  તમને લઇ જશે  . શીરી  થોડું હિન્દી   બોલતી હતી   .અને વધુ હિન્દી શીખવા માગતી હતી  . મને એણે પૂછ્યું  તમે મને હિન્દી શીખવશો ? મેં તેને  હિન્દી શીખવવા માટે  ખુશી બતાવી  .એટલે એ ખુશ  થઇ અને  शुक्रिया  બોલી   . શીરીની સાથે જે બાઈ હતી એનું નામ વેલારી હતું  .
બીજે દિવસે  મને  પાવેરો લઇ ગયો   .અને પછી  એ એક ગુજરાતી દીપક દેસાઈને  લેવા ગયો  . અમો બધા  ચર્ચનાં  એક  રૂમમાં ગયા   આ રૂમમાં  ધાર્મિક ચર્ચા  હિન્દી ભાષામાં થતી હતી  , અહી એક બાઈ  કે જેનું નામ રાજ હતું તે પણ એના પતિ સાથે આવેલી  રાજ ઈંગ્લેન્ડમાં જન્મેલી અને જર્મન માં ઉછરેલી હતી  . છતાં તેણે પોતાની માતૃ ભાષા પંજાબી    જાળવી રાખેલી   .મેં અને રાજે પંજાબી ભાષામાં  વાતો કરી  . હું રાજને પોતીકો માણસ લાગ્યો  .     પ્રારંભમાં  હિન્દીમાં  ઈંગ્લીશ ઢબે પ્રાર્થના  બોલાઈ  અને પછી કેરળ (ભારત ) નાં માણસે  હિન્દીમાં પ્રવચન કર્યું  , અને વીસેક મિનીટ પછી  હિન્દી  હોલ બંધ થયો અને સૌ ઈંગ્લીશ હોલમાં ગયા   . મને અને દીપકને  લઈને પાવેરો   અમને  પોત પોતાને ઘરે મુકવા આવ્યો  . પ્રથમ મારે ઘરે આવ્યો   . મેં દીપકભાઈને મારી વાડી માંથી  થોડા તીખા  મરચા લેવાનું કીધું અને મેં તેમને થેલી આપી  તેઓએ પોતાને જોઈએ એટલા મરચા લીધા અને મને કીધું કે હું આનું અથાણું બનાવીશ  . દીપક ભાઈ વેજીટેરીયન છે  . બધી રસોઈ બનાવતા તેમે આવડે છે  .એવું મને એમને કીધું  .  .તેઓ કહેતા હતા કે એક દિવસ મેં  પાવેરોને  મુઠીયા ખાવા આપેલા  . દીપક ભાઈ ને અને રાજને મળવાથી મને ઘણો આનંદ થયો  .
तुलसी इस संसारमे  सबसे मिलिओ धाय   , ना जाने किसी भेषमे  नारायण मिल जाय  .

22 responses to “मंदर मस्जिद इमामखाना चर्च गुरु द्वारा जाता हुँ ,

  1. pragnaju એપ્રિલ 21, 2015 પર 12:41 પી એમ(pm)

    ‘मंदर मस्जिद इमामखाना चर्च गुरु द्वारा जाता हुँ ,मिलता हुँ जब में मर्दुमको तब मसरूर हो जाताहुँ . ‘
    याद
    बुल्‍ले शाह एक महान सूफी संत हुए. उन्‍होंने जो रचा, वह धर्म से बहुत उंचा हो गया. बुल्‍ला की काफियां और कलमे पढ़कर लगता है कि वह खुदा को बहुत करीब से जान गए थे. वे एक नेकदिल इंसान थे. उसकी कुछ पंक्तियां मैं यहां प्रस्‍तुत कर रही हूं. आशा करती हूं कि इन दिनों जो कटुता अल्‍लाह और भगवान के नाम पर फैलाई जा रही है, ये पंक्तियां ऐसी कटुता फैलाने वालों को आईना दिखाएंगी-
    इंसान की पहचान इंसानियत
    ”चल वे बुल्‍लेआ चल ओथे चल्लिए
    जित्‍थे सारे अन्‍नेह
    ना कोई साडी जात पछाणे
    ते ना कोई सानू मन्‍ने”
    मतलब- बुल्‍ले शाह ने खुद से कहा है कि ऐ बुल्‍ले चल हम वहां चलते हैं जहां सभी अंधे लोग बसते हों. ताकि ऐसी जगह पर हमें कोई पहचान न सके और न ही कोई हमें माने.
    इन पंक्तियों से अगर धर्मांध लोगों का अज्ञान दूर नहीं होता तो ये देखिए-
    किसी का दिल ना तोड़ना, क्‍योंकि रब या अल्‍लाह या भगवान तो दिलों में बसता है.
    उनकी एक क़ाफी देखें-
    पढ़ पढ़ आमिल फाजिल होया
    कदी अपणे आप नूं पढेआ ही नहीं
    जा जा वड़दा मंदिर मसीतां
    कदी मन अपने विच तूं वड़ेआ ही नहीं
    ऐवें रोज शैतान दे नाल लड़दा
    कदी नफ्ज़ अपने नाल लड़ेआ ई नहीं
    बुल्‍ले शाह आसमानीं उडीया फड़दा
    जेहड़ा घर बैठा ओहनू फड़ेआ ही नहीं
    मतलब- किताबें पढ़-पढ़ कर तुम बहुत विद्वान हो गए हो, कभी अपने आप को तो पढ़ा ही नहीं. तुम बार-बार मंदिरों में मस्जिदों में जाते हो, पर कभी अपने खुद के अंदर नहीं घुसे. कहने तो तुम रोज शैतान से लड़ते हो, कभी खुद के अहंकार से तो लड़े ही नहीं. यहां अहंकार का अर्थ जो पढ़ लिया, जान लिया वही सही है उसके सिवाय न तो कुछ सही है और न सही हो सकता. हे बुल्‍ले शाह तू आसमान की चीजों की बात करता है, क्‍या कभी तून उसकी बात की, जो तेरे अंदर बैठा है. मतलब उस खुदा को तो तूने पकड़ा ही नहीं, जो तुम्‍हारे भीतर है.
    ……….“तुलसी यही जग आई के सबसे मिलियो धाय. ना जाने किस वेष में नारायण मिली जाय.”
    कबीरदास , रामानंद जी के शिष्य थे ……कबीर ने राम विषयक सारी धारणाओं को बदल कर रख दिया ….कबीर के राम दशरथ के पुत्र नहीं हैं,और न ही वे चतुर्भुज विष्णु के अवतार हैं…..कबीर के राम अकाल ,अजन्मा ,और अरूप है जिसे हिन्दू राम और मुसलमान रहीम कहता है…..और जिसे कबीरदास ने अपने तरफ से एक नाम “साहब ” का दिया है ……कहते है की कृष्ण धर्म में रसिकता की अति देखकर ही रामानंद ने राम की भक्ति चलायी थी और वे रामभक्ति में माधुरी नहीं लाना चाहते थे…….पर कबीर ने राम को अपना “पति ” ही मान लिया ……सूफी मत के अनुसार राम को प्रियतमा समझना अधिक प्रासंगिक होता पर कबीर पे छाये हुए हिन्दू संस्कारों ने कबीर को ठीक इस्लामी नहीं रहने दिया ……फिर भी राम की कल्पना में कबीर ने जो परिवर्तन किये उसका कारन इस्लामी प्रभाव था
    किन्तु कबीर के बाद जो सगुणोपासना की धारा उमड़ी उसने सम्पूर्ण संस्कृति और साहित्य को पलावित कर दिया ………इस धरा के कवियों और संतो में पांडित्य भी है और सहिस्नुता भी ……..इनमे आक्रोश और कटुता के वोह भाव नहीं हैं जो कबीर और उनके अनुनायिओं में दिखाई पढ़ते हैं ……..इसमें न तो नकारात्मकता है और न खुद पर झेपने की प्रविर्ती ………कबीर ने राम मन्त्र तो रामानंद से लिया किन्तु वेदांत और इस्लामी प्रभाव या संस्कारों के कारन उन्हें राम को दशरत का पुत्र मानने में झिझक हुयी ……..किन्तु जब तुलसीदास आये तो उन्होंने , डंके की चोट पर यह घोषणा कर दी की हाँ ,मेरा उपास्य वही राम है जिसने दशरथ के घर अवतार लिया था :-

    मंगल भवन अमंगल हारी
    द्रबहु सुदसरथ अजिर बिहारी

    • aataawaani એપ્રિલ 21, 2015 પર 4:13 પી એમ(pm)

      किसी शायरने कहा हैकि
      जिहाद उसको नही कहते की होव खून इन्सां का
      करेजो कत्ल अपने नफ़्से काफ़िर को वो गाज़ी है
      और महमद इक़बाल कहता है की
      बाज़ आये हमतो ऐसी मज़हबी ताऊन से
      इन्सानोका हाथ तर हो इंसानोके खून से
      काबेमे बुतखाने में है एक्सी तेरी जिआ
      मुझे इम्तियाज़ दैरो हरममे फसा दिया
      बिठाके अर्श पर रख्खाहे तूने आय वाइज़
      खुदा क्या वो है जो बंदोसे एह्तराज़ करे
      काबे भी हम गए न गया पर बुतोंका इश्क ये शेर इकबालका नही किसी ओरका है
      इस दर्दकी खुदाके भी घरमे दवा नहीं
      तेरे सिवा सब कोई काफ़िर आखिर इसका मतलब क्या सर फ़िर दे इंसानका ऐसा खब्ते मज़हब क्या .
      ये इकबालका शेर
      मिला नही वो कही मुझको मिला जो खान इ दिलमे
      बहुत सर मारा मस्जिदमे बहुतसा ढूढ़ा बूत खाना
      પ્રજ્ઞા બેન તમે મારી સુષુપ્ત યાદ શક્તિ જગાડી દ્યો છો . ઘણું ભુલાએલું યાદ આવી જાય છે .

      • pragnaju એપ્રિલ 21, 2015 પર 5:11 પી એમ(pm)

        دنیا جسے کہتے ہیں بچے کا کھلونا ہے
        مل جائے تو مٹی ہے، کھو جائے تو سونا ہے
        اچھا سا کوئی موسم، تنہا سا کوئی عالم
        ہر وقت کا رونا تو بیکار کا رونا ہے
        برسات کا بادل تو دیوانہ ہے کیا جانے
        کس راہ سے بچنا ہے، کس چھت کو لینا ہے
        یہ وقت جو تیرا ہے یہ وقت جو میرا ہے
        ہر گام پہ پہرہ ہے پھر بھی اسے کھونا ہے
        غم ہو کہ خوشی دونوں کچھ دور کے ساتھی ہیں
        پھر راستہ ہی راستہ ہے، هسانا ہے نہ رونا ہے
        آوارہ مذاجي نے پھیلا دیا آنگن یوں
        آسمان کی چادر ہے سرزمین کو بچھونا ہے -ندا فاضلی
        दुनिया जिसे कहते हैं बच्चे का खलौना है
        मिल जाए तो मिटटी है ,खो जाए तो सोना है
        अच्छा सा कोई मौसम ,तनहा सा कोई आलम
        हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है
        बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
        किस राह से बचना है ,किस छत को भिगोना है
        ये वक़्त जो तेरा है ये वक़्त जो मेरा है
        हर गाम पे पहरा है ,फिर भी इसे खोना है
        गम हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
        फिर रास्ता ही रास्ता है,हँसाना है न रोना है
        आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आँगन यों
        आकाश की चादर है धरती का बिछौना है —
        निदा फ़ाज़लीदुनिया जिसे कहते हैं बच्चे का खलौना है
        मिल जाए तो मिटटी है ,खो जाए तो सोना है
        अच्छा सा कोई मौसम ,तनहा सा कोई आलम
        हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है
        बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
        किस राह से बचना है ,किस छत को भिगोना है
        ये वक़्त जो तेरा है ये वक़्त जो मेरा है
        हर गाम पे पहरा है ,फिर भी इसे खोना है
        गम हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
        फिर रास्ता ही रास्ता है,हँसाना है न रोना है
        आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आँगन यों
        आकाश की चादर है धरती का बिछौना है —निदा फ़ाज़ली

        • aataawaani એપ્રિલ 21, 2015 પર 8:59 પી એમ(pm)

          बहुत ढूंढा खुदाको हमने काबा और कालिसामे
          कहा “आता ” को कामिलने वो तेरे दिलमे बस्ता है .
          खुदा हर शी में मौजूद है न एक जगह पे वो रहता
          बहुत दिया है बिन मांगे फिरभी किसीको नहीं कहता
          अदना आता की प्रज्ञा बहनको सलाम

      • pragnaju એપ્રિલ 22, 2015 પર 5:08 એ એમ (am)

        مجنو نے شہر چھوڑا ہے صحرا بھی چھوڑ دے
        نذذارے [کی ہوس ہو تو لیلی بھی چھوڑ دے
        واعظ كمالے-دلیل سے ملتی ہے يا مراد
        دنیا جو چھوڑ دی ہے تو ابقا بھی چھوڑ دے
        تقلید کی روش سے تو بہتر ہے خدكشي
        رستہ بھی ڈھونڈ، خضر کا سودا بھی چھوڑ دے
        شبنم کی طرح پھولوں پہ رو اور چمن سے چل
        اس باغ میں قیام [کا سودا بھی چھوڑ دے
        سوداگري نہیں یہ عبادت خدا کی ہے
        اے بے خبر جذا کی تمنا بھی چھوڑ دے
        اچھا ہے دل کے پاس رہے پاسبانے-عقل
        لیکن کبھی کبھی اسے تنہا بھی چھوڑ دے
        جینا وہ کیا جو ہو نفسے-غیر [پر مدار [
        شہرت کی زندگی کا بھروسہ بھی چھوڑ دے

        • aataawaani એપ્રિલ 22, 2015 પર 8:39 એ એમ (am)

          ત્યાગ કરવાની વાતો બહુ અસર કારક કવિએ કરી છે .શહેર જંગલ બધું છોડી દે મજનુને તો ત્યાં સુધી કીધું કે તારી લૈલીને પણ પડતી મુક . વાહ પ્રજ્ઞા બેન વાહ બહુ સરસ ગજલ વાંચવા આપી . કદાચ મારે મારી અને મિત્રોને પ્યારી “આતાવાણી ” છોડવી પડશે ?

        • aataawaani એપ્રિલ 22, 2015 પર 9:21 પી એમ(pm)

          પ્રજ્ઞા બેન મને આ ગજલ મળે એમ લાગતું નથી .

        • pragnaju એપ્રિલ 22, 2015 પર 9:59 એ એમ (am)

          સહજરીતે તો દેહ પણ છોડવાનો છે ત્યારે પણ એક કવિ કહે છે કે,” હું સિકંદર નથી કે ખાલી હાથ જાઉં ! જ્યારે
          જઇશ ત્યારે તમારી યાદ સાથે લઇ જઇશ
          બધા લાભ લઇ શકે માટે અનુવાદ
          मजनूँ ने शहर छोड़ा है सहरा भी छोड़ दे
          नज़्ज़ारे[ की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे

          वाइज़ कमाले-तर्क से मिलती है याँ मुराद
          दुनिया जो छोड़ दी है तो उबक़ा भी छोड़ दे

          तक़लीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुदकुशी
          रस्ता भी ढूँढ, ख़िज़्र का सौदा [8] भी छोड़ दे

          शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
          इस बाग़ में क़याम[9] का सौदा भी छोड़ दे

          सौदागरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
          ऐ बेख़बर जिज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

          अच्छा है दिल के पास रहे पास्बाने-अक़्ल
          लेकिन कभी-कभी उसे तन्हा भी छोड़ दे

          जीना वो क्या जो हो नफ़्से-ग़ैर पर मदार
          शोहरत की ज़िन्दगी का भरोसा भी छोड़ दे

          वाइज़ सबूत लाए जो मय के जवाज़ में
          इक़बाल को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे
          અમને શબ્દ नफ़्से-ग़ैर અને મક્તાનો શેર વધુ ગમે

        • pragnaju એપ્રિલ 23, 2015 પર 5:30 એ એમ (am)

          પ્રજ્ઞા બેન મને આ ગજલ મળે એમ લાગતું નથી .
          मेरा कातिल ही मेरा मुन्सिफ है
          क्या मेरे हक़ में फैसला देगा ? ગઝલ મળી
          دمی آدمی کو کیا دے گا
          جو بھی دے گا، وہیں خدا دے گا
          میرا قاتل ہی میرا منسپھ ہے
          کیا میرے حق میں فیصلہ دے گا
          زندگی کو قریب سے دیکھو
          اس کا چہرہ تمہیں رلا دے گا
          ہم سے پوچھو نا دوستی کا صلہ
          دشمنوں کا بھی دل ہلا دے گا
          عشق کا زہر پی لیا ‘فاکر’
          اب مسیحا بھی کیا دوا دے گا

        • aataawaani એપ્રિલ 23, 2015 પર 6:53 એ એમ (am)

          कुशल प्रज्ञा बेन  आप  कहींसे भी धुंध  सकते हो  . Ataai ~sacha hai dost hagiz juta ho nahi sakta   jal jaega sona firbhi kaalaa ho nahi sakta                Teachers open door, But you must enter by yourself.

          From: આતાવાણી To: hemataata2001@yahoo.com Sent: Thursday, April 23, 2015 5:30 AM Subject: [આતાવાણી] Comment: “मंदर मस्जिद इमामखाना चर्च गुरु द्वारा जाता हुँ ,” #yiv9243578915 a:hover {color:red;}#yiv9243578915 a {text-decoration:none;color:#0088cc;}#yiv9243578915 a.yiv9243578915primaryactionlink:link, #yiv9243578915 a.yiv9243578915primaryactionlink:visited {background-color:#2585B2;color:#fff;}#yiv9243578915 a.yiv9243578915primaryactionlink:hover, #yiv9243578915 a.yiv9243578915primaryactionlink:active {background-color:#11729E;color:#fff;}#yiv9243578915 WordPress.com | | |

  2. Pravin Patel એપ્રિલ 22, 2015 પર 6:08 પી એમ(pm)

    આજે તો આતવાણી કરતા પ્રજ્ઞાવાણી ચડી !
    પ્રજ્ઞાબેને ખુબ ઉચી વાત કરી નાખી,મઝા આવી !

  3. aataawaani એપ્રિલ 22, 2015 પર 9:58 પી એમ(pm)

    ब्लॉगरकी साथ मोजसे रहना तुझे जो है ,
    कम जर्फसे कमेंटकी भिक छोडदे .

    • pragnaju એપ્રિલ 23, 2015 પર 5:11 એ એમ (am)

      جرپھ سے ماورا ہو اتنا نہیں مانگا جاتا.
      پیاس لگتی ہے تو دریا نہیں مانگا جاتا
      जर्फसे बढके हो इतना नहीं मांगा जाता.
      प्यास लगती है तो दरिया नहीं मांगा जाता

      • aataawaani એપ્રિલ 23, 2015 પર 6:22 એ એમ (am)

        زعرورتس زيادة خيا نهي جاتا
        جهان م جيتنا ناج حي ف بتم سمايا نهي جاتا
        ज़रूरतसे ज्यादा: खुराक :खाया नही जाता
        जहां में जितना नाज है वो पेटमे समाया नही जाता

        • pragnaju એપ્રિલ 23, 2015 પર 6:49 એ એમ (am)

          چاند جیسی ہو بیٹی کسی مفلسی تو
          اونچے گھر والوں سے رشتہ نہیں مانگا جاتا
          اپنے کمزور بذرگوكا سہارا مت لو
          خشک پےڈوسے تو سایہ نہیں مانگا جاتا
          ہے عبادت کے لیے تو اكدت شرط دانا
          بدگي کیلئے سجدہ نہیں مانگا جاتا

        • aataawaani એપ્રિલ 23, 2015 પર 7:06 એ એમ (am)

          ये बिलकुल सच है “बंदगीके  लिए  सजदा  नही माँगा जाता ” एक शेर वो सजदा क्या रहे  एहसान  जिसमे सर उठानेका इबादत और बी कद्रे होश  तौहीने इबादत है  Ataai ~sacha hai dost hagiz juta ho nahi sakta   jal jaega sona firbhi kaalaa ho nahi sakta                Teachers open door, But you must enter by yourself.

          From: આતાવાણી To: hemataata2001@yahoo.com Sent: Thursday, April 23, 2015 6:49 AM Subject: [આતાવાણી] Comment: “मंदर मस्जिद इमामखाना चर्च गुरु द्वारा जाता हुँ ,” #yiv3498484858 a:hover {color:red;}#yiv3498484858 a {text-decoration:none;color:#0088cc;}#yiv3498484858 a.yiv3498484858primaryactionlink:link, #yiv3498484858 a.yiv3498484858primaryactionlink:visited {background-color:#2585B2;color:#fff;}#yiv3498484858 a.yiv3498484858primaryactionlink:hover, #yiv3498484858 a.yiv3498484858primaryactionlink:active {background-color:#11729E;color:#fff;}#yiv3498484858 WordPress.com | | |

        • aataawaani એપ્રિલ 23, 2015 પર 6:52 એ એમ (am)

          कुशल प्रज्ञा बेन आप कहींसे भी धुंध सकते हो .

आपके जैसे दोस्तों मेरा होसला बढ़ाते हो .मै जो कुछ हु, ये आपके जैसे दोस्तोकी बदोलत हु, .......आता अताई

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