साक़ी पिलादे आज तू मुझको गमका मारा आया हु

मेरे प्यारे दोस्तों  आज मै आपकी खिदमतमे एक ग़ज़ल पेश करता हुँ जो
“बृंदा बनका किशन कनैया  सबकी आँखों का तारा ” की तरह गया जा सकेगा   .
साक़ी पिलादे आज तू मुझको  गमका मारा आया हुँ  .
ग़मका मारा आया हुँ और  रंजसे  हारा आया हुँ। ….1 साक़ी
सिर्फ दो बून्द मै पि लूंगा और ज़ख्मे जिगरको  सी लूंगा
क़सम है तेरी ज्यादा : पियूँ तो  तोबा करके  आया हुँ। ।२ साक़ी
दैरो हरममे जाकर आया कहीं मिटा नहीं ग़म मेरा
जा पहुंचा जब मयखानेमे  साक़ी से सुकूं पाया हुँ। ….3 साक़ी
मुझको मंज़ूर  पीना साक़ी  रंजूर होना रास नहीं
आज पिलादे  ओक्से साक़ी  पैमाना  नहीं लाया हूँ। …४ साक़ी
आताको”  मयखार समझकर  दुनियाने  ठुकराया  है
जाम छलकता  सहबा देके  साकिने अपनाया है। ।५  साक़ी
साक़ी = शराब पिलाने वाली ///ग़म = दू:ख //रंज = तकलीफ  ,  दू:ख
सी = सिलाई करना //तोबा  = फिरसे  न करनेकी प्रतिज्ञा
दैरो -हरम =मंदर मस्जिद  //सुकु = मौज  , आनंद
रंजूर = बिमार  /// रास= अनुकूल // ऑक == दोनों हथेली जुडी हुई
मयखार = शराबी ///सहबा ==लाल रंगकी मदिरा

2 responses to “साक़ी पिलादे आज तू मुझको गमका मारा आया हु

  1. pragnaju એપ્રિલ 3, 2015 પર 5:11 એ એમ (am)

    i میں تو جب مانوں مری توبہ کے بعد کر کے مجبور پلا دے ساقی i

  2. aataawaani એપ્રિલ 3, 2015 પર 6:57 એ એમ (am)

    में तो जब मानु मेरी तोबा ” वाह वाह क्या शेर भेजा प्रग्ना बेन आपने मैं तो नशेमे चक चूर हो गया .

आपके जैसे दोस्तों मेरा होसला बढ़ाते हो .मै जो कुछ हु, ये आपके जैसे दोस्तोकी बदोलत हु, .......आता अताई

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