Daily Archives: એપ્રિલ 2, 2015

साक़ी पिलादे आज तू मुझको गमका मारा आया हु

मेरे प्यारे दोस्तों  आज मै आपकी खिदमतमे एक ग़ज़ल पेश करता हुँ जो
“बृंदा बनका किशन कनैया  सबकी आँखों का तारा ” की तरह गया जा सकेगा   .
साक़ी पिलादे आज तू मुझको  गमका मारा आया हुँ  .
ग़मका मारा आया हुँ और  रंजसे  हारा आया हुँ। ….1 साक़ी
सिर्फ दो बून्द मै पि लूंगा और ज़ख्मे जिगरको  सी लूंगा
क़सम है तेरी ज्यादा : पियूँ तो  तोबा करके  आया हुँ। ।२ साक़ी
दैरो हरममे जाकर आया कहीं मिटा नहीं ग़म मेरा
जा पहुंचा जब मयखानेमे  साक़ी से सुकूं पाया हुँ। ….3 साक़ी
मुझको मंज़ूर  पीना साक़ी  रंजूर होना रास नहीं
आज पिलादे  ओक्से साक़ी  पैमाना  नहीं लाया हूँ। …४ साक़ी
आताको”  मयखार समझकर  दुनियाने  ठुकराया  है
जाम छलकता  सहबा देके  साकिने अपनाया है। ।५  साक़ी
साक़ी = शराब पिलाने वाली ///ग़म = दू:ख //रंज = तकलीफ  ,  दू:ख
सी = सिलाई करना //तोबा  = फिरसे  न करनेकी प्रतिज्ञा
दैरो -हरम =मंदर मस्जिद  //सुकु = मौज  , आनंद
रंजूर = बिमार  /// रास= अनुकूल // ऑक == दोनों हथेली जुडी हुई
मयखार = शराबी ///सहबा ==लाल रंगकी मदिरा