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हज़रत शाह नियाज़ की सूफी ग़ज़ल

दुनिया के कइ मज़हबका  कहना है की गोड (परमेश्वर )आस्मानपे रहता है  बोध्ध और जैन मजहब परमेश्वर का अस्तित्व का स्वीकार नहीं करते हज़रत इसा से तकरीबन ६०० साल पहले हिन्दोस्तानमे इक फिलासफी जिसका नाम था ब्रुसस्पति  उसका कहना है की परमेश्वर  स्तुति और निंदा से पर है वो सर्व व्यापी है और सर्व शक्ति मान भी है इक गुजराती  दोहरता है की “प्रभु कण कन मा व्यापक छे नथी कोई एक स्थले रहतो घनु आप्यु वगर मागये छता कोइने नथी केहतो ”

अब हज़रत शाह नियाज़ की ग़ज़ल पेश है यारको हमने जा ब जा  देखा कही ज़ाहिर तो कही छुपा देखा यारको हमने जा ब जा देखा

कही मुमकिन हुवा कही वाजिब कही फानी कही बका देखा  कही वो बादशाहे तख्त् नशी कही कासा लिए गदा देखा  .

कही वो दर लिबासे माशुकन  बरसरे नाज़ और अदा  देखा कही आशिक “नियाज़ ” की सूरत सीना बरिया और दिल जला देखा

यार=   परमेश्वर    यार के कई मतलब निकलते है  सूफी लोग  अल्लाहको  माशूक भी कह देते है

जा ब जा = जगह जगह पर

मुमकिन =संभव

वाजिब= उचित

फानी = नाशवंत

बका =अमर

बादशाहे तख़्त नशी =सिंहासन ऊपर  विराजमान  महाराजा

कासा लिए गदा = भिक्सापात्र के साथ भिखारी

दर लिबासे माशुकन = अच्छे कपडे पहनी हुई प्रेमिका

बरसरे नाज़ और अदा = हाव भाव नखरे के साथ

सीना बरिया = मजबूत मनोबल वाला

दिलजला = भग्न ह्रदयी