पत्थरकी पुकार एक आक्रंद

6 responses to “पत्थरकी पुकार एक आक्रंद

  1. સુરેશ જાની મે 3, 2013 પર 5:08 એ એમ (am)

    વાહ! વિડિયો મુકતાં શીખી ગયા? સરસ.

  2. અમિત પટેલ મે 3, 2013 પર 6:15 એ એમ (am)

    ખુબ સરસ, તમને સાંભળવાની અને જોવાની મજા આવી.

    • aataawaani મે 3, 2013 પર 7:06 એ એમ (am)

      પ્રિય અમિત ભાઈ
      આવતીકાલે મારો ખાસ સ્નેહી હિતેશ દેસાઈ મારી બર્થ ડે પાર્ટી રાખવાનો છે . તેમાં તમે મને મારા અવાજને અને મિત્રોના અવાજ ને અને તેમને જોઈ શકશો

  3. pragnaju મે 3, 2013 પર 10:50 એ એમ (am)

    વાહ
    અમે બ્લોગ વર્લ્ડમાંથી નીકળવાનો વિચાર કરતા હતા પણ આપનો આ ઉત્સાહ જોઈ પ્રેરણા મળે…
    યાદ
    पत्‍थर की पुकार
    कौन देखेगा पत्थरों की पीडा,
    वो करता रह-रह कर चित्कार,
    कहता है कुछ अनसुनी सी पुकार।
    वो इतनी मंद्र ओर सुकोमल है।
    वो छू नहीं सकती पत्थरों के कानों,
    ओर जगा नहीं सकता जड़वत दिलों में स्पंदन,
    बो तड़प कर कुछ कहना चाहती है,
    पर हम जीते है,
    उस दुनियां मैं जहां नहीं
    छू सकती उन पत्थरों की पुकार,
    ओर न भेद सकते उन दिलों को
    जो मनुष्यस होने पर भी, करता पत्थर सा बर्ताव,
    जीवित रह कर भी, नहीं जीवित वो दिखता है।
    कोन कहता है हम जीवन जीत है
    हम तो केवल उसे को ढोते से दिखते है।
    अपनी ही सलीब को ढ़ो रहे है,
    अपने ही कंधों पर।
    हाय मनुष्य,
    तू कब जाग सकेगा ,
    कितनी मधुर बलाएं जा चुकी है। कितने मधुमास और बसंत में कोयल गा चुकी मधुर गान।
    लेकिन नहीं पहुँचती तेरे तक कोई भी आजान,
    क्यान तू मशीनों के साथ रह कर मशीन हो गया है।
    तेरा लगाव आज निर्जीव वस्तुओं से अधिक है
    और जीवंत चीजों से तुमने नाता तोड़ लिया है।
    क्या कभी नहीं पिघलेगा तेरा पत्थ र दिल।
    फिर कैसे खिल सकेगें उस पर कोई कमल।
    नहीं आयेगी वो बेला,
    जब हटा सकेगा आपने जीवन से अंधेरा
    ओर नहीं आयेगा तेरे जीवन में कभी कोई सवेरा।
    बस तू किनारे बैठ
    ताकता रहेगा दूर व्योम में अस्ताचल जीवन को।
    केवल जड़वत मृतवत सा…………

आपके जैसे दोस्तों मेरा होसला बढ़ाते हो .मै जो कुछ हु, ये आपके जैसे दोस्तोकी बदोलत हु, .......आता अताई

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