Daily Archives: ડિસેમ્બર 17, 2012

ઉપદેશાત્મક ગઝલ

है बहारे बाग दुनिया चंदरोज़ देखलो इसका तमाशा चंदरोज़

अय मुसाफर कुचका सामान कर इस जहां में है बसेरा चंदरोज़

फिर तुम कहाँ और मै कहाँ अय दोसतो साथ मेरा और तुम्हारा चंदरोज़

पूछा लुक्मां से जिया तू कितने रोज़ दस्ते मलकर हंसके बोला चंदरोज़

बाद ए मद्फुन कब्रमे बोली कज़ा अब यहाँ पे सोते रहना चंदरोज़

क्यों सताते हो दिले बे ज़ुर्मको जालिमो ये है ज़माना चंदरोज़

याद कर तू अय “नज़र “कबरोके रोज़ जिन्दगीका है भरोसा चंदरोज़

कूच =प्रयाण बसेरा=रहेनेका स्थान लुक्मां =प्राचीन यूनानी हकीम दस्ते मलकर =हाथ मसलने की क्रिया मद्फ़ुन =डाटा हुवा कज़ा =मोत बेज़ुर्म =निर्दोष