मिर्ज़ा ग़ालिबकी ग़ज़ल

हज़ारों खवाहिशे ऐसीकी  हर   खवाहिशपे  दम  निकले

बहुत निकले मेरे  अरमान लेकिन फिरभी कम निकले ………1

निकलना  खुल्दसे आदमका  सुनते  आये है लेकिन

बहुत  बे आबरू होकर तेरे कुचेसे  हम निकले ……………..2

मुहब्बतमे नहीं  है फर्क जीने ओर मरनेका

उसीको  देख कर जीते है जिस काफिरपे दम निकले …..3

खुदाके वासते पर्दा न काबेसे उठा  वाइज़

कहीं  ऐसा न हो वहांभी  वही काफिर सनम निकले ……4

कहाँ मयखानेका  दरवाज़ा ग़ालिब ओर कहाँ वाइज़

पर इतना  जानते है कल  वो आताथा  कि  हम निकले …5

1

6 responses to “मिर्ज़ा ग़ालिबकी ग़ज़ल

  1. Shakil Munshi ઓગસ્ટ 27, 2012 પર 4:17 એ એમ (am)

    है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और
    करते हैं मुहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और

    या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
    दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और

    आबरू से है क्या उस निगाह -ए-नाज़ को पैबंद
    है तीर मुक़र्रर मगर उसकी है कमाँ और

    तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
    ले आयेंगे बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जाँ और

    हरचंद सुबुकदस्त हुए बुतशिकनी में
    हम हैं तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ और

    है ख़ून-ए-जिगर जोश में दिल खोल के रोता
    होते कई जो दीदा-ए-ख़ूँनाबफ़िशाँ और

    मरता हूँ इस आवाज़ पे हरचंद सर उड़ जाये
    जल्लाद को लेकिन वो कहे जाये कि हाँ और

    लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब का धोका
    हर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और

    लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन
    करता जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ और

    पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले
    रुकती है मेरी तब’अ तो होती है रवाँ और

    हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
    कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
    – मिर्ज़ा गालिब

  2. સુરેશ ઓગસ્ટ 27, 2012 પર 5:34 એ એમ (am)

    આ અમર ગઝલો ‘ મિર્ઝા ગાલિબ’ ફિલ્મમાં રૂપેરી પડદા ઉપર મન ભરીને માણેલી.

  3. Vinod R. Patel ઓગસ્ટ 27, 2012 પર 10:00 એ એમ (am)

    આતાજી , કોઈ પણ ગઝલ પ્રેમીને મિર્ઝા ગાલીબની ગઝલ ડોલાવી ન જાય એ બને નહી.

    આજની પોસ્ટમાં મુકેલ એમની ગઝલ મન ભરીને માણી .

    યુ ટ્યુબના વિડીયોમાં શોધ કરતાં આ ગઝલનો વિડીયો મળી આવ્યો એ નીચે આપું છું.ગાયિકાનો સુંદર
    સ્વર ગઝલને ચાર ચાંદ લગાવી દે છે.

    Hazaaron Khwahishen Aisi – Fariha Pervez sings Ghalib

  4. aataawaani ઓગસ્ટ 27, 2012 પર 6:37 પી એમ(pm)

    વિનોદભાઈ
    સુંદર અવાજમાં મેં મુકેલ બ્લોગમાં મિર્ઝા ગાલીબની ગઝલ તમે મને સંભળાવી . જોકે અધુરી હતી.શો વાળાને સમયની પણ કીમત હોયને ?
    વિનોદભાઈ તમારા મારા પ્રત્યેના પ્રેમ ની હું કદર કરું છું આભાર આતા

आपके जैसे दोस्तों मेरा होसला बढ़ाते हो .मै जो कुछ हु, ये आपके जैसे दोस्तोकी बदोलत हु, .......आता अताई

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