नरेश कुमार” शाद ” की ग़ज़ल

बहकी हुई बहारने  पीना सिखा दिया

बद मस्त बर्गोबार ने पीना  सिखा  दिया …1

पीता हूँ इस गरजसे की जीना  है चार  दिन

मरनेके  इन्त्ज़ारने  पिना सिखा  दिया ….2

दुनियाके  कारोबारथे इस दर्जा दिल शिकन

दुनियाके  कारोबारने  पिना सिखा दिया ….3

गमहाये रोजगारको जब हम ना पी  सके

गमहाये रोजगारने  पिना  सिखा दिया …4

अय “शाद “हमतो अपनी तरफसे  थे मोहतरिज

याराना  मय गूसारने  पिना  सिखा दिया …5

 

4 responses to “नरेश कुमार” शाद ” की ग़ज़ल

  1. pragnaju ઓગસ્ટ 20, 2012 પર 5:21 પી એમ(pm)

    अय “शाद “हमतो अपनी तरफसे थे मोहतरिज
    याराना मय गूसारने पिना सिखा दिया
    वाह
    नरेश कुमार ‘शाद’की यह रचना हमें ज्यादा पसंद है

    यों आए वो रात ढले
    जैसे जल में ज्योत जले

    मन में नहीं ये आस तेरी
    चिंगारी है राख तले

    हर रुत में जो हँसते हों
    फूलों से वो ज़ख्म भले

    वक़्त का कोई दोष नहीं
    हम ही न अपने साथ चले

    आँख जिन्हें टपका न सकी
    शे’रों में वे अश्क़ ढले

  2. સુરેશ ઓગસ્ટ 21, 2012 પર 7:42 એ એમ (am)

    क्या पीना सिखा दिया…. वो तो नहीं लिखा !
    पानी या दूध ? !!

आपके जैसे दोस्तों मेरा होसला बढ़ाते हो .मै जो कुछ हु, ये आपके जैसे दोस्तोकी बदोलत हु, .......आता अताई

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  બદલો )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  બદલો )

Connecting to %s

%d bloggers like this: