मेरे मय परस्त अह्बाबके लिए

मराजावु जब मै  यारो मातम नहीं मनाना
उठाके जनाज़ा  मेरा नग्मा सुनाते जाना .रखना …….१
लाके लहदमे  मुजको  उल्फत के  साथ  रखना
इत्तरके       बदले मुंह पर आबे अंगूर  छिड़कना ……..२
तुर्बत पे मेरी आना  शमा नहीं जलाना
दोस्ताना  गर है दोस्तों बोतल  शराब लाना …………….३
“आता “को याद करना से   मदरासे जाम भरना
सागर  बदल बदल कर पि लेना और पिलाना …………..4

4 responses to “मेरे मय परस्त अह्बाबके लिए

  1. pragnaju જૂન 6, 2012 પર 10:07 એ એમ (am)

    मराजावु जब मै यारो मातम नहीं मनाना
    उठाके जनाज़ा मेरा नग्मा सुनाते जाना .रखना …
    लाके लहदमे मुजको उल्फत के साथ रखना
    इत्तरके बदले मुंह पर आबे अंगूर छिड़कना
    गालिब साहब याद आये
    “हुई मुद्दत के गालिब मर गया फिर भी याद आता है
    वह हरेक बात पर कहना की यूँ होता तो क्या होता”

    कहूं किस से मैं कि क्या है शब-ए-गम बुरी बला है
    मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता

    हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यूँ ना गर्क़-ए-दरिया
    ना कभी जनाज़ा उठता ना कहीँ मज़ार होता
    …………………………………………..
    शब को मेरा जनाज़ा जायेगा यूँ निकलकर
    रह जायेंगे सहर तक दुश्मन भी हाथ मलकर

    ‘ऐसी जगह कोई काम क्यों करे, जहां उसकी
    इज़्ज़तका जनाज़ा धूमधाम से निकाला जाता है!
    ………………………………………………..
    “आता “को याद करना से मदरासे जाम भरना
    सागर बदल बदल कर पि लेना और पिलाना

    गो हाथ को जुम्बिश नहीं आंखों में तो दम है
    रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे
    ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, ये तेरा बयां गालिब
    तुझे हम वली समझते जो ना बादाख्वार होता

  2. rahiajnabi જૂન 19, 2012 પર 4:17 પી એમ(pm)

    vah , vah
    kya bat hain
    kiesa vahsiyat nama hain ……..

    Rahiajnabi…

आपके जैसे दोस्तों मेरा होसला बढ़ाते हो .मै जो कुछ हु, ये आपके जैसे दोस्तोकी बदोलत हु, .......आता अताई

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